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- 19 February 2011
गुरु-शिष्य
गुरु शिष्य परंपरा अनादि काल से निरंतर चली आ रही है, परन्तु वर्तमान में एक नयी भेड़-चाल शुरू हो गयी है जो इस परंपरा के महत्त्व को गिरा रही है | आज कल का नया फैशन है गुरु बनाने का ... हर व्यक्ति गुरु बनाने में लगा हुआ है .... बोलता है कि इस बार कथा सुनने फलाने कथा वाचक के यहाँ गया था क्या बोलते है भाई ? मैंने तो उन से गुरुमंत्र ले लिया ... आज के दौर में गुरु का मतलब क्या समझ रहे हैं आप लोग ? गुरु का अर्थ होता है जो व्यक्ति को ईश्वर समझा दे, ईश्वर से मिलवा दे और उस प्रक्रिया में उसको जब भी परेशानी हो तो गुरु उसकी मदद के लिए मौजूद हो | उसकी सभी बाधाएं हरने की क्षमता रखता हो | उसको उचित दिशा दिखाने वाला गुरु है | कथा वाचक से गुरु दीक्षा ? अगर आप किसी बड़े कथावाचक की दिनचर्या पर प्रकाश डालें तो शायद उसके पास स्वयं के लिए समय नहीं होता तो वह आप को क्या रास्ता दिखायेगा | मेरा आशय सिर्फ इतना ही है, गुरु बनाना या गुरु बनना दोनों ही बड़ी प्रक्रिया है जो रस्ते चलते पूरी नहीं हो सकती ... " बिनु हरि कृपा मिले नहीं संता " और हरि की कृपा के लिए हरि के बताये मार्ग पर चल के तो देख गुरु स्वयं तेरे द्वार ना आ जाएँ तो कहना ||
|| धर्म की जय हो ||