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मंगला-गौरी व्रत कथा

MG vrat katha

 मां मंगला गौरी कथा 

बहुत पुरानी बात थी, एक समय मे कुरु नामक देश मे, श्रुतिकीर्ति बहुत प्रसिद्ध सर्वगुण संपन्न , अतिविद्वान राजा हुआ करता था जोकि, अनेकों कलाओं मे तथा विशेष रूप से धनुष विद्या में  निपूर्ण था| सम्पूर्ण सुखों के बाद भी राजा बहुत दुखी और परेशान था क्यों कि, उसके कोई पुत्र नहीं था| वह संतान सुख से वंचित था| जिसके चलते राजा ने कई जप-तप, ध्यान, और अनुष्ठान कर देवी की भक्ति-भाव से तपस्या करने से देवी प्रसन्न हुई |

देवी प्रसन्न हुई और बोली - " हे राजन! मांगो क्या मांगना चाहते हो |"

तब राजा ने कहा-  "माँ, मैं  सर्व-सुखों व धन-धान्य से समर्थ हूँ | यदि कुछ नही है तो, वह संतान-सुख जिससे मैं  वंचित हूँ | मुझे वंश चलाने के लिये वरदान के रूप में  एक पुत्र दीजिये |"

देवी माँ ने कहा " राजन, यह बहुत ही दुर्लभ वरदान है | पर तुम्हारे तप से प्रसन्न हो कर, मैं यह वरदान तो देती हूँ परन्तु तुम्हारा पुत्र सोलह वर्ष तक ही जीवित रहेगा|"

यह बात सुन कर राजा और उनकी पत्नी बहुत चिंतित हुये| सभी बातोँ को जानते हुए भी राजा-रानी ने यह वरदान माँगा|

देवी माँ के आशीर्वाद से, रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया| राजा ने उस बालक का नामकरण संस्कार कर, उसका नाम चिरायु रखा | साल बीतते गये, राजा को अपने पुत्र की अकाल मृत्यु की चिंता सताने लगी|

तब किसी विद्वान के कहानुसार, राजन ने सोलह वर्ष से पूर्व ही, अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से कराया जो, मंगला गौरी के व्रत करती थी, जिससे उस कन्या को भी व्रत के फल स्वरूप, सर्वगुण सम्पन्न वर की प्राप्ति हुई| तथा उस कन्या को सौभाग्यशाली व सदा सुहागन का वरदान प्राप्त था| जिससे विवाह के उपरान्त, उसके पुत्र की अकाल मत्यु का दोष स्वत: ही समाप्त हो गया | और राजा का वह पुत्र अपने नाम के अनुसार चिरायु हुआ|

इस तरह जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या पूरे भक्ति-भाव से, यह फलदायी मंगला गौरी व्रत करती है, उसकी सब इच्छा पूर्ण होकर सर्वसुखों की प्राप्ति होती है| जो भी स्त्री इस व्रत को पूरे मनोभाव से करती है उनको पति-सुख की प्राप्ति होती है ऐसा है माँ-मंगला-गौरी व्रत का प्रभाव |

जय माँ गौरी

जय भोले

 

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