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Shrikrishna Janmastmi (श्रीकृष्णजन्माष्टमी)

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा त्योहार है जिसको हर कोई मनाता है चाहे कोई अपने को बहुत आधुनिक मानता हो या पारम्परिक, यही ही हमारे कन्हैया की महिमा

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था | हर वर्ष ही श्रीकृष्ण जन्म को ले कर भ्रम की स्थिति बनती ही है | अधिकतर श्रीकृष्ण का जन्म दो दिन मनाया जाता है | परन्तु इस बार यह स्थिति तीन दिनों तक लोग श्रीकृष्ण जन्म उत्सव मनाएंगे |

 

आइये पंचांग पर नजर डालें

11 अगस्त को उदया तिथि में सप्तमी तिथि रहेगी, प्रातः 9:06 पर अष्टमी तिथि लगेगी जो 12 अगस्त की प्रातः 11:15 तक रहेगी | अतः मध्यरात्रि में अष्टमी का संयोग तो 11 अगस्त को मिलेगा, परन्तु नक्षत्र रोहिणी नहीं मिलेगा | सभी गृहस्थों को 11 अगस्त को व्रत रख कर जन्म करवाना श्रेष्ठ रहेगा |

12 अगस्त को उदया तिथि में अष्टमी तिथि मिलेगी, पर मध्यरात्रि में ना ही अष्टमी तिथि मिलेगी ना ही रोहिणी नक्षत्र प्राप्त होगा | उदयातिथि को प्रधान मानने वाले 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे | मथुरा और वृन्दावन में 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाय्री जायेगी |

12 अगस्त की भोर से रोहिणी नक्षत्र आरंभ हो कर 13 अगस्त दिन भर रहेगी तो रोहिणी नक्षत्र को मानने वाले 13 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे |

 


कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, रोहिणी अष्टमी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।

हमारे वेदों और शास्त्रों में चार रात्रियों का विशेष महात्म बताया गया है- दीपावली जिसे "काल-रात्रि" कहते है, शिवरात्रि "महा-रात्रि" है, श्रीकृष्णजन्माष्टमी "मोह-रात्रि" और होली "अहो-रात्रि" है

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदीगृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना  गया है | इसी कारण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है।

इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत "व्रतराज" कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य प्राप्त कर सकते है |

जन्माष्टमी दो प्रकार की होती है - अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम से संबोधित की जाएगी।

वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए।

विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी।

वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए।

मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।

विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है।

भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है।

व्रत महात्यम

भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि  न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को  नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है | 

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। 

भविष्य पुराण का वचन है-  कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें

"ॐ नमों भगवते वासुदेवाय"

 या

 "श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:"॥

अथवा

"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय" ||

अथवा

हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे !

हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !

व्रत-पूजन कैसे करेंश्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्त लोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णव लोग सप्तमी का किन्चिन मात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । 

वैष्णवों में उदयाव्यपिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं |

उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश, द्रव्य दक्षिणा और गंध लेकर संकल्प करें

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयेश्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ 

स्तुति:-   

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम । नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम । सर्वांगे हरिचन्दनम सुरलितम, कंठे च मुक्तावलि । गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ॥यदि संभव हो तो मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।

तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सम्पादित करे तदोपरांत श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करे |

निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।' 

उसके  पश्चात सभी परिजनों में प्रसाद वितरण कर सपरिवार अन्न भोजन ग्रहण करे और  यदि संभव हो तो रात्रि  जागरण करना विशेष लाभ प्रद सिद्ध होता है जो किसी भी जीव की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ति करता है |

श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दिन "संतान गोपाल मंत्र", के जाप व "हरिवंश पुराण", "गीता"  के पाठ का भी बड़ा ही महत्व्य है |यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि में "सम्मोहन"  के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है | यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है | 

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