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- 27 February 2011
नरक चतुर्दशी
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को 'नरक-चतुर्दशी', 'छोटी दीपावली', 'रूप-चतुर्दशी', 'यमराज निमित्य दीपदान' के रूप में मनाया जाता है |
आज के दिन को नरकासुर से विमुक्ति के दिन के रूप में भी मनाया जाता है | आज के ही दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था | नरकासुर ने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीन लिए थे | वरुण को छत्र से वंचित कर दिया था | मंदराचल के मणिपर्वत शिखर को कब्ज़ा लिया था | देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं को 16100 कन्याओं का अपहरण करके उन्हें बंदी बना लिया था |कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन कन्याओं को बंदीगृह से छुड़ाया, उसके बाद स्वयं भगवान ने उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सभी अपनी पत्नी स्वरुप वरण किया | इस प्रकार सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई, इस महत्वपूर्ण घटना के रूप में नरकचतुर्दशी के रूप में छोटी दीपावली मनाई जाती है |
रूप चतुर्दशी (उबटन लगाना और अपामार्ग का प्रोक्षण )
आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए | सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है साथ ही पद्म-पुराण के मंत्र का पाठ करें
"सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:||" "हे तुम्बी(लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो |"
फिर स्नान करें और स्नान के उपरांत लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए | इस से रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है | आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है |
पद्मपुराण में लिखा है जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता है अर्थात नरक का भागी नहीं होता है |
भविष्य पुराण के अनुसार जो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं | इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है | नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास होता है |
नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर व व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने चाहिए | तेल की दीपमाला जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है ऐसा स्वयं भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा था | भगवान विष्णु ने राजा बलि को धन-त्रियोदशी से दीपावली तक तीन दिनों में दीप जलाने वाले घर में लक्ष्मी के स्थायी निवास का वरदान दिया था |
इस सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है : जब भगवान वामन ने त्रियोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को तीन कदम में नाप दिया | राजा बलि जो की परम दानी थे उन्होंने अपना पूरा राज्य भगवान विष्णु अवतार भगवान वामन को दान कर दिया इस पर भगवान वामन ने प्रसन्न हो कर बलि से वर मांगने को कहा | बलि ने भगवान से कहा कि, 'हे प्रभु ! मैंने जो कुछ आपको दिया है, उसे तो मैं मांगूंगा नहीं और न ही अपने लिए कुछ और मांगूंगा, लेकिन संसार के लोगों के कल्याण के लिए मैं एक वर मांग ता हूँ ! आपकी शक्ति है, तो दे दीजिये !" भगवान वामन ने कहा, " क्या वर मांगन चाहते हो ! राजन ?" दैत्यराज बलि बोले : " प्रभु ! आपने कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली | इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे उनके सभी पित्र लोग कभी नरक में ना रहे उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए |" राजा बलि की प्रार्थना सुन कर भगवान वामन बोले : " राजन ! मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे उनके सभी पित्र लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे उन्हें छोड़ कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेंगी | जो इन तीन दिनों में बलि के राज में दीपावली नहीं करेंगे उनके घर में दीपक कैसे जलेंगे ? तीन दिन बलि के राज में जो मनुष्य उत्साह नहीं करते, उनके घर में सदा शोक रहे |" भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है |
आज के दिन पर हनुमान जयंती भी मनाई जाती है हनुमान जी रूद्र के ग्यारहवें अवतार हैं । इनकी जन्म के सम्बन्ध में निम्न श्लोक प्रचलित है -
"आश्विनस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि । भौमवारे अंजनादेवी हनुमंतमजीजनत ।।
अर्थात आश्विन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार की महानिशा में अंजनादेवी के उदार से हनुमान जी का जन्म हुआ । इस आधार पर हुमन जयंती आज के दिन मनाई जाती है यद्यपि हनुमान जी की अवतार की अन्य तिथियाँ भी प्रचलित है : चैत्र पूर्णिमा, चैत्र शुक्ल एकादशी ।